दरवाज़े के छेद ने दिखाई जन्नत

मेरी उमर 18 साल हैं. मैं जड्ज साहब के यहाँ बगीचे में काम करता हूँ. बगीचे की पूरी देख रेख, रख रखाव कल्लू उस्ताद के जिम्मा हैं. कल्लू 40 साल का आदमी हैं, जो जड्ज साहब के यहा 10 साल से काम कर रहा हैं. सुना हैं कल्लू किसी जुर्म के सिलसिले में जैल के साज़ा काट रहा था. जड्ज साब के मेहरबानियों के वजह से वह आज़ाद हो पाया. इस लिए उसने अपना बाकी जीवन जड्ज साहब को समर्पित करने का फ़ैसला किया. कल्लू की शादी नही हुई. शायद ही कोई लड़की उससे शादी करना चाहे. उसका चहरे पर कई जगह छुरे से कटा निशान हैं. वो एक दम काला हैं. शकल से ही कोई समझ जायगे की मुजरिम रहा होगा. उसका शारीर एकदम लोहा जैसा मज़बूत हैं और वो बहुत ताकतवार हैं. बड़ा बड़ा गमलो को जिन्हे दो आदमी भी मुश्किल से उठाते हैं, वो आसानी से अकेला उठा लेता है.

अगर कोई लड़की उसे एक नज़र देख ले, तो उसे ऐसा लगे की किसी बलात्कारी मुजरिम के सामने खड़ी है. इस लिए काम वाली बाई उससे बहुत डरती हैं. वो जड्ज साहब का वफ़ादार हैं. मैं कल्लू का असिस्टेंट हू. जड्ज साहब करीब करीब 55 साल के हैं और उन्होने देर से शादी की. पर उनका कोई बच्चा नही हैं. पर जड्ज साहब की बीवी कुसुम 28 साल की जबर कयामत हैं. असल में, कुसुम मेमसहाब को फूल बहुत पसंद हैं. इसलिया जड्ज साहब ने ये बगीचा बनवाया ताकि उनकी बागम खूबसूरत फूलो के बीच रह सके. रोज सुबह जड्ज साहब और कुसुम मेमसाहाब बगीचे में टहलने आते हैं.

कुसुम मेमसहाब बहुत खूबसूरत हैं. वो किसी संगमरमर में तराशि हुई अजंता के मूरत जैसी हैं. सबसे खूबसूरत उनके नितांब हैं, जिनको मैं टकटकी लगाकर अक्सर देखता रहता हूँ.

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मैं कभी कभी कल्पना में उन्हे नंगी देखता हू और उनके नितंबों को चूमता हुआ मूठ मार लेता हूँ. पर मुझे यकीन हैं की उनका गोरे नितंब मेरी कल्पना से कही ज़्यादा मस्त होंगे. जड्ज साहब के किस्मत के इस बुढ़ापे मे उनके लॅंड को इतना सुंदर नितंबों का साथ मिला हैं. कुसुम मेमसहाब अक्सर मुझपर और कल्लू उस्ताद पर चिल्लाति हैं की हम काम ठीक से नही करते. हर काम में वो नुक्स निकालती हैं. चाहे हम जितनी भी महनत कर ले, हमे डाट ही मिलती हैं. बेचारा कल्लू हात जोड़े खड़ा रहता हैं और डाट ख़ाता हैं, पर चू तक नही करता. मुझे भी कभी कभी गुस्सा आ जाता हैं, पर मैं दोपहर को उन्हे याद करकर अपना गुस्सा ठंडा कर लेता हूँ. हमे दोपहर को 12 से 5 तक के छुट्टी रहती हैं. जिस टाइम मैं सोता हूँ और मेमसहाब को याद करता हूँ. एक दिन दोपहर को मुझे नींद नही आ रही थी, क्योंकि जड्ज सहाब दिल्ली गया हुआ था और उन्होने मुझे ध्यान रखने को कहा था.

तो मैं घर के चारों तरफ एक चक्कर मरने निकल गया. बगीचा जहाँ ख़तम होता था, वहाँ से जड्ज साहब की कोठी शुरू होती थी. इस तरफ एक दरवाज़ा था, जो कुसुम मेमसाहब के स्नान घर का था. जो बंद रहता था. स्नान घर का दूसरा दरवाज़ा कुसुम मेमसाहब के कमरे में था, जहाँ से वो प्रवेश करती थी, नहाने के लिए.

मैं जब वहाँ से गुज़रा तो मुझे कुछ सिसकियों की आवाज़ आई. मैं धीरे से दरवाज़े के पास गया और कान लगा कर सुनने लगा. सिसकियाँ कुसुम मेमसहाब की ही थी. अब इसे मेरी खुशकिस्मती या बदक़िस्मती कहिए, उस दरवाज़ा में एक छोटा सा छेद था. मैने घबरा कर चारों तरफ देखा और फिर हिम्मत करके झाकने लगा. मेरी सासा थम गयी उस नज़ारे को देखकर. कुसुम मेमसहाब पूरी नंगी खड़ी थी और उन्होने अपना बड़ा और प्यारा नितंब बहार कर रखा था और कल्लू अपनी काली काली और मोटी उंगिलियों से उनके नितंबों के उपर दबा रहा था.

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पहले उसने एक उंगली डाली और कुसुम मेमसहाब कसमसा उठी फिर दूसरी डाली. तो आ के आवाज़ निकली. फिर कालू अपनी उंगिलियों को घूमाने लगा धीरे धीरे. बीच बीच में वो कुसुम मेमसहाब के नितंबों को काट लेता, जिसपे कुसून मेमसहाब मुस्करा कर उसके बालों को प्यार से सहलाने लगती. फिर कालू उठा और उसने अपना बड़ा सा सामान बाहर निकाला. बाप रे मैं तो डर गाया देख कर. 8 इंच का काला मोटा और पत्थर जैसा मज़बूत लंड जिसे देख कर कुसुम मेमसहाब एक पल के लिए झपि. पर उनका चहरा के मुस्कुराहाट देखकर ऐसा लगा की कल्लू और उनका मिलन पहली बार का नही हैं. ऐसा पहले भी हो चुका हैं. कुसुम मेमसहाब ने अपनी चुत कल्लू के तरफ करके खड़ी हो गयी और अपना नितंबों को बाहर के तरफ निकाल लिया. कल्लू ने अपना ख़तरनाक समान पे थोड़ा सा साबुन गीला कर के लगा लिया. काला सा लंड अब झाक से सफेद दिखने लगे.

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फिर उसने धीरे से अपने लंड को कुसुम मेमसहाब के नितंबो के दरार में प्रस्थान किया. कुसुम मेमसहाब ज़ोर से चीखी, पर कल्लू भी उस्ताद था. उसने कुसुम मेमसहाब के कमर में हाथ घुमा लिया और ज़ोर से पकड़ लिया. अब कुसुम मेमसहाब के पास कल्लू के ख़तरनाक लंड को अपने नितंबों में बर्दाश करना के सिवाया और कोई चारा ही नही था. कल्लू ज़ोर ज़ोर से चुदाइ करने लगा और कुसुम मेमसहाब कसमसाते गयी. 20 मिनट तक कल्लू का लंड कुसुम मेमसहाब को परेशान करता रहा और कुसुम मेमसहाब सिसकियाँ लेती रही. कल्लू उनके नितंबों पर और चिपकता गाया और फिर धीरे धीरे उसकी रफ़्तार थमने लगी. आख़िर में उसका मूह से एक गंदी सी आ निकली और कुसुम मेमसहाब के चेहरे पर एक तृप्ति की लहर दौड़ गयी. कुसुम मेमसहाब ने उसे मुस्करा कर देखा और तौलिया लपेट कर संडास कमरे के तरफ चली गयी. मैं भागा वाहा से और सीधा अपने कमरे में आ गाया. तुरंत अपना लंड निकाल कर मूठ मारा. पहली बार इतना आनंद आया मुझे “जन्नत”.

शाम हो गयी मेरा मन उदास हैं. मैं कभी कल्लू उस्ताद को माफ़ नही करूँगा. वैसा तो उनका अहसानमंद हू की उनकी वजह से मुझे कुसुम मेमसहाब को नंगी देखने का अवसर मिला. पर इस तराहा मैं नही चाहता था. ये दुनिया बड़ी अजीब हैं. यहाँ दिखता कुछ हैं और होता कुछ हैं. क्या कुसुम मेमसहाब को कल्लू ही मिला इस सब के लिए. गाओं में क्यँ स्मार्ट लड़का नही थे के कल्लू से ही मरवाना था. पर उनकी भी ग़लती नही हैं. औरात सुलभता ढूंडती हैं और कल्लू से ज़्यादा सुलभ और क्या था. मैने अपनी पोटली बाँध ली. अब और नही रह सकता यहाँ मैं. जड्ज साहब नही लौटा. मेम सहाब मेरा इंतेज़ार कर रही थी हॉल में. मैने छुट्टी की अर्ज़ी दी थे. मुझे लगा था की वह मुझे दांटेंगी पर ऐसा नही हुआ. उन्होने मुझे 200 रूपीए दिया और मेरे बालों को सहलाते हुए कहा जल्दी आना. मुझे बहुत अछा लागा. मैने कुसुम मेमसहाब को माफ़ कर दिया और कल्लू को भी.

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