बहन के साथ चूत चुदाई का मजा-1 का अगला भाग:
मैंने एक जीन्स का पैंट और टी-शर्ट खरीदा और दीदी ने एक गुलाबी रंग की पंजाबी ड्रेस, एक गर्मी के लिए स्कर्ट और टॉप और 2-3 टी-शर्ट खरीदीं।
हम लोग मार्केट में और थोड़ी देर तक घूमते रहे। अब क़रीब 7:30 बज गए थे। दीदी ने मुझे सारे शॉपिंग बैग थमा दिए और बोलीं- आगे जा कर मेरा इंतज़ार करो, मैं अभी आती हूँ।
अपनी सेक्स लाइफ को बनाये सुरक्षित, रखे अपने लंड और चुत की सफाई इनसे!
वो एक दुकान में जा कर खड़ी हो गईं। मैंने दुकान को देखा, वो महिलाओं के अंडरगार्मेन्ट की दुकान थी। मैं मुस्कुरा कर आगे बढ़ गया। मैं देखा कि दीदी का चेहरा शर्म के मारे लाल हो चुका है, और वो मेरी तरफ़ मुस्कुरा कर देखते हुए दुकानदार से बातें करने लगीं।
कुछ देर के बाद दीदी दुकान पर से चल कर मेरे पास आईं। दीदी के हाथ में एक बैग था। मैं दीदी को देख कर मुस्कुरा दिया और कुछ बोलने ही वाला था कि दीदी बोलीं- अभी कुछ मत बोल और चुपचाप चल!
हम लोग चुपचाप चल रहे थे। मैं अभी घर नहीं जाना चाहता था और आज मैं दीदी के साथ अकेला था और मैं दीदी के साथ और कुछ समय बिताने के लिए बेचैन था।
मैंने दीदी से बोला- चलो कुछ देर हम लोग समुंदर के किनारे पर बैठते हैं और भेलपुड़ी खाते हैं।
‘नहीं, देर हो जाएगी!’ दीदी मुझसे बोलीं। लेकिन मैंने फिर दीदी से कहा- चलो भी दीदी।
अभी सिर्फ़ 7:30 बजे हैं और हम लोग थोड़ी देर बैठ कर घर चल देंगे और माँ जानती हैं कि हम दोनों साथ-साथ हैं, इसलिए वो चिंता भी नहीं करेंगी।
दीदी थोड़ी सोच कर बोलीं- चल समुंदर के किनारे चलते हैं।
दीदी के राज़ी होने से मैं बहुत खुश हुआ और हम दोनों समुंदर के किनारे, जो कि मार्केट से सिर्फ़ 10 मिनट का पैदल रास्ता था, चल दिए।
हमने पहले एक भेलपुड़ी वाले से भेलपुड़ी ली और एक मिनरल वाटर की बोतल ली और जाकर समुंदर के किनारे बैठ गए।
हम लोग समुंदर के किनारे पास-पास पैर फैला कर बैठ गए। अभी समुंदर का पानी पीछे था और हमारे चारों तरफ़ बड़े-बड़े पत्थर पड़े हुए थे।
वहाँ खूब ज़ोरों की हवा चल रहीं थी और समुंदर की लहरें भी तेज़ थी। इस समय बहुत सुहाना मौसम था। हम लोग भेलपुड़ी खा रहे थे और बातें कर रहे थें।
दीदी मुझ से सट कर बैठी थीं और मैं कभी-कभी दीदी के चेहरे को देख रहा था। दीदी आज काले रंग की एक स्कर्ट और ग्रे रंग का ढीला सा टॉप पहनी हुई थीं।
एक बार ऐसा मौका आया जब दीदी भेलपुड़ी खा रहीं थी, तो एक हवा का झोंका आया और दीदी की स्कर्ट उनकी जाँघ के ऊपर तक उठ गईं और दीदी की जांघें नंगी हो गईं।
दीदी ने अपने जाँघों को ढकने की कोई जल्दी नहीं की। उन्होंने पहले भेलपुड़ी खाईं और आराम से रूमाल से हाथ पोंछ कर फिर अपनी स्कर्ट को जाँघों के नीचे किया और स्कर्ट को पैरों से दबा लिया।
वैसे तो हम लोग जहाँ बैठे थे वहाँ अंधेरा था, फिर भी चाँदनी की रोशनी में मुझे दीदी की गोरी-गोरी जाँघों का पूरा नज़ारा मिला। दीदी की जाँघों को देख कर मैं कुछ गर्म हो गया।
जब दीदी ने अपनी भेलपुड़ी खा चुकी तो मैं दीदी से पूछा- दीदी, क्या हम उन बड़े-बड़े पत्थरों के पीछे चलें?
दीदी ने फ़ौरन मुझसे पूछा- क्यों?
मैंने दीदी से कहा- वहाँ हम लोग और आराम से बैठ सकते हैं।
दीदी ने मुझसे मुस्कुराते हुए पूछा- यहाँ क्या हम लोग आराम से नहीं बैठे हैं?
‘लेकिन वहाँ हमें कोई नहीं देखेगा!’ मैंने दीदी की आँखों में झाँकते हुए धीरे से बोला।
तब दीदी शरारत भरी मुस्कान के साथ बोलीं- तुझे लोगों के नज़रों से दूर क्यों बैठना है?
मैंने दीदी को आँख मारते हुए बोला- तुम्हें मालूम है कि मुझे क्यों लोगों से दूर बैठना है।
दीदी मुस्कुरा कर बोलीं- हाँ मालूम तो है, लेकिन सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए बैठेंगे। हम लोग को वैसे ही काफ़ी देर हो चुकी है। और दीदी उठ कर पत्थरों के पीछे चल पड़ी।
मैं भी झट से उठ कर पहले अपना बैग संभाला और दीदी के पीछे-पीछे चल पड़ा। वहाँ पर दो बड़े-बड़े पत्थरों के बीच एक अच्छी सी जगह थी। मुझे लगा वहाँ से हमें कोई देख नहीं पाएगा।
मैंने जा कर वहीं पहले अपने बैग को रखा और फिर बैठ गया। दीदी भी आकर मेरे पास बैठ गईं। दीदी मुझसे क़रीब एक फ़ुट की दूरी पर बैठी थीं।
मैंने दीदी से और पास आ कर बैठने के लिए कहा। दीदी थोड़ा सा सरक कर मेरे पास आ गईं और अब दीदी के कंधे मेरे कंधों से छू रहे थे।
मैंने दीदी के गले में बाहें डाल कर उनको और पास खींच लिया। मैं थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा और फ़िर दीदी के कान के पास अपना मुँह ले जाकर धीरे से कहा – आप बहुत सुंदर हो।
‘सोनू’, क्या तुम सही बोल रहे हो?’ दीदी ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं।
मैंने दीदी के कानों पर अपना होंठ रगड़ते हुए बोला – मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ। मैं तुम्हारे लिए पागल हूँ।
दीदी धीरे से बोलीं- मेरे लिए?
मैंने फिर दीदी से धीरे से पूछा- मैं तुम्हें क़िस कर सकता हूँ?
दीदी कुछ नहीं बोलीं और अपनी सर मेरे कंधों पर टिका कर आँखें बंद कर लीं। मैंने दीदी की ठुड्डी पकड़ कर उनका चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया। तो दीदी ने एकाएक मेरी आँखों में झाँका और फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं।
मैं अब तक दीदी को पकड़े-पकड़े गर्म हो चुका था और मैंने अपने होंठ दीदी के होंठों पर रख दिए। ओह! भगवान दीदी के होंठ बहुत ही रसीले और गर्म थे।
जैसे ही मैंने अपने होंठ दीदी के होंठ पर रखे। दीदी की गले से एक घुटी-सी आवाज़ निकल गईं। मैं दीदी को कुछ देर तक चूमता रहा। चूमने से मैं तो गर्म हो ही गया और मुझे लगा कि दीदी भी गर्मा गईं हैं।
दीदी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थीं। अब मैं अपने हाथ से दीदी की एक चूची पकड़ कर दबाने लगा। मैं इत्मीनान से दीदी की चूची से खेल रहा था क्योंकि यहाँ माँ के आने का डर नहीं था।
मैं थोड़ी देर तक दीदी की एक चूची कपड़ों के ऊपर से दबाने के बाद मैंने अपना दूसरा हाथ दीदी की टॉप के अंदर घुसा दिया और उनकी ब्रा के ऊपर से उनकी चूची मींज़ने लगा।
मुझे हाथ घुसा कर दीदी की चूची दबाने में थोड़ा अटपटा सा लग रहा था और इसलिए मैंने अपने हाथों को दीदी की टॉप में से निकाल कर अपने दोनों हाथों को उनकी कमर के पास रखा और धीरे-धीरे दीदी की टॉप को उठाने लगा और फिर अपने दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा।
दीदी मुझे रोक नहीं रही थीं और मुझे कुछ भी करने का अच्छा मौक़ा था। मैं अपने दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से मसल रहा था।
दीदी बस अपने गले से घुटी- घुटी मस्त सिसकारियाँ निकाल रही थीं।
मैं अपने दोनों हाथों को दीदी के पीछे ले गया और उनकी ब्रा के हुक खोलने लगा। जैसे ही मैंने दीदी की ब्रा का हुक खोला तो ब्रा गिर कर उनके मम्मों पर लटक गईं। दीदी कुछ नहीं बोलीं।
मैं फिर से अपने हाथों को सामने लाया और दीदी की चूचियों पर से ब्रा हटा कर उनकी चूचियों को नंगा कर दिया। मैंने पहली बार दीदी की नंगी चूची पर अपना हाथ रखा। जैसे ही मैं दीदी की नंगी चूचियों को अपने हाथों से पकड़ा।
अधिक सेक्स कहानियाँ : गाँव की गोरी और डॉक्टर-1
दीदी कुछ कांप सी गईं और मेरे दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया। मैं अब तक बहुत गर्मा गया था और मेरा लौड़ा खड़ा हो चुका था। मुझे बहुत ही उत्तेजना चढ़ गई थी।
मैं सोच रहा था झट से अपने पैंट में से अपना लौड़ा निकालूँ और दीदी के सामने ही मुट्ठ मार लूँ। लेकिन मैं अभी मुट्ठ नहीं मार सकता था। मैं अब ज़ोर-ज़ोर से दीदी की नंगी चूचियों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर मसल रहा था।
मैं दीदी की चूची को दबा रहा था, रगड़-रगड़ कर मसल रहा था और कभी-कभी उनके निप्पलों को अपने उँगलियों में पकड़ कर मसल रहा था।
दीदी के निप्पल इस वक़्त अकड़ कर कड़े हो गए थे। जब-जब मैं निप्पलों को अपने उँगलियों में पकड़ कर उमेठता था, तो दीदी छटपटा उठती।
मैंने बहुत देर तक चूचियों को पकड़ कर मसलने के बाद, अपना मुँह नीचे करके दीदी के एक निप्पल को अपने मुँह में ले लिया। दीदी ने अभी भी अपनी आँखें बंद कर रखी थीं।
जब दीदी की चूची पर मेरा मुँह लगा तो दीदी ने अपनी आँखें खोल दीं और देखा कि मैं उनके एक निप्पल को अपने मुँह में भर कर चूस रहा हूँ, वो भी गर्मा गईं।
दीदी की साँसे ज़ोर-ज़ोर से चलने लगीं और उनका बदन उत्तेजना से काँपने लगा। दीदी ने मेरे हाथों को कस कर पकड़ लिया।
इस वक़्त मैं उनकी दोनों दूधों को बारी-बारी से चूस रहा था। अब दीदी के गले से अजीब-अजीब सी आवाजें निकलने लगीं। उन्होंने मुझे कस कर अपनी छाती से लिपटा लिया और थोड़ी देर के बाद शांत हो गईं।
मेरा चेहरा नीचे की तरफ़ था और दीदी की चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से चूस रहा था। मुझे पर दीदी के पानी की खुशबू आई। ओह माय गॉड! मैंने अपनी दीदी की चूत की पानी सिर्फ़ उनकी चूची चूस-चूस कर निकाल दिया था?
मैं अपना हाथ दीदी की चूची पर से हटा कर उनकी चूचियों को हल्के से पकड़ते हुए उनके होंठों को चूम लिया। मैंने अपना हाथ दीदी के पेट पर रख कर नीचे की तरफ़ ले जाने लगा और धीरे-धीरे मेरा हाथ दीदी की स्कर्ट के हुक तक पहुँच गया।
दीदी मेरा हाथ पकड़ कर बोलीं- अब और नीचे मत ले।
मैंने दीदी से पूछा- क्यों?
दीदी तब मेरे हाथों को और ज़ोर से पकड़ते हुए बोलीं- नीचे अपना हाथ मत ले जाओ, अभी उधर बहुत गंदा है।
मैंने झट से दीदी को चूम कर बोला- गंदा क्यों हैं? क्या तुम झड़ गईं।
दीदी ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा- हाँ, मैं झड़ गई हूँ।
मैंने फिर दीदी से पूछा- दीदी मेरी वजह से तुम झड़ गईं हो?
‘हाँ’ सोनू, तुम्हारी वजह से ही मैं झड़ गई हूँ। तुम इतने उतावले थे कि मैं अपने आप को संभाल ही नहीं पाई।’ दीदी ने मुस्कुरा कर मुझसे कहा।
मैंने भी मुस्कुरा कर दीदी से पूछा- क्या तुम्हें अच्छा लगा?
दीदी मुझे पकड़ कर चूमते हुए बोलीं- मुझे तुम्हारी चूची चुसाई बहुत अच्छी लगी, और उसके बाद मुझे झाड़ना और भी अच्छा लगा। दीदी ने आज पहली बार मुझे चूमा था।
दीदी अपने कपड़ों को ठीक करके उठ खड़ी हो गईं और मुझसे बोलीं- सोनू, आज के लिए इतना सब काफ़ी है, और हम लोगों को घर भी लौटना है।
मैंने दीदी को एक बार फिर से पकड़ चुम्मा लिया और सड़क की तरफ़ चलने लगे। मैंने सारे बैग फिर से उठा लिए और दीदी के पीछे पीछे चलने लगा।
थोड़ी दूर चलने के बाद वे मुझसे बोलीं- मुझे चलने में बहुत परेशानी हो रही है।
मैंने फ़ौरन पूछा- क्यों?
दीदी मेरी आँखों में देखती हुई बोलीं- नीचे बहुत गीला हो गया है। मेरी पेंटी बुरी तरह से भीग गई है। मुझे चलने में बहुत अटपटा लग रहा है।
मैंने मुस्कुराते हुए बोला- दीदी मेरी वजह से तुम्हें परेशानी हो गई है न?
दीदी ने मेरी एक बाँह पकड़ कर कहा- सोनू, यह ग़लती सिर्फ़ तुम्हारी अकेले की नहीं है, मैं भी उसमें शामिल हूँ।
हम लोग चुपाचाप चलते रहे और मैं सोच रहा था कि दीदी की समस्या को कैसे दूर करूँ? एकाएक मेरे दिमाग़ में एक बात सूझी।
मैंने फ़ौरन दीदी से बोला- एक काम करते हैं। वहाँ पर एक पब्लिक टॉयलेट है, तुम वहाँ जाओ और अपने पेंटी को बदल लो। अरे तुमने अभी अभी जो पेंटी खरीदी है, वहाँ जाकर उसको पहन लो और गन्दी हो चुकी पेंटी को निकाल दो।
दीदी मुझे देखते हुए बोलीं- तेरा आईडिया तो बहुत अच्छा है। मैं जाती हूँ और अपनी पेंटी बदल कर आती हूँ।
हम लोग टॉयलेट के पास पहुँचे और दीदी ने मुझसे अपनी ब्रा और पेंटी वाला बैग ले लिया और टॉयलेट की तरफ़ चल दीं।
जैसे ही दीदी टॉयलेट जाने लगी, मैंने दीदी से धीरे से बोला- तुम अपनी पेंटी चेंज कर लेना तो साथ ही अपनी ब्रा भी चेंज कर लेना। इससे तुम्हें यह पता लग जाएगा कि ब्रा ठीक साइज़ की हैं या नहीं!!
दीदी मेरी बातों को सुन कर हँस पड़ीं और मुझसे बोलीं- बहुत शैतान हो गए हो और स्मार्ट भी।
दीदी शर्मा कर टॉयलेट चली गईं।
क़रीब 15 मिनट के बाद दीदी टॉयलेट से लौट कर आईं। हम लोग बस स्टॉप तक चल दिए हम लोगों को बस जल्दी ही मिल गईं और बस में भीड़ भी बिल्कुल नहीं थीं।
बस क़रीब-क़रीब ख़ाली थीं। हमने टिकट लिया और बस के पीछे जा कर बैठ गए।
सीट पर बैठने के बाद मैंने दीदी से पूछा- तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली न?
दीदी मेरी तरफ़ देख कर हँस पड़ीं।
मैंने फिर दीदी से पूछा- बताओ ना दीदी। क्या तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली है?
तब दीदी ने धीरे से बोलीं- हाँ सोनू, मैंने अपनी ब्रा चेंज कर ली है।
मैं फिर दीदी से बोला- मैं तुमसे एक रिक्वेस्ट कर सकता हूँ?
दीदी ने मेरी तरफ देखा और कहा- हाँ बोल।
‘मैं तुम्हें तुम्हारे नए पेंटी और ब्रा में देखना चाहता हूँ।’ मैंने दीदी से कहा।
दीदी फ़ौरन घबरा कर बोलीं- यहाँ? तुम मुझे यहाँ मुझे ब्रा और पेंटी में देखना चाहते हो?
मैंने दीदी को समझाते हुए बोला- नहीं, यहाँ नहीं, मैं घर पर तुम्हें ब्रा और पेंटी में देखना चाहता हूँ।
दीदी फिर मुझसे बोलीं- पर घर पर कैसे होगा। माँ घर पर होगी। घर पर यह संभव नहीं हैं।
‘कोई समस्या नहीं हैं’, माँ घर पर खाना बना रही होंगी और तुम रसोई में जाकर अपने कपड़े चेंज करोगी। जैसे तुम रोज़ करती हो।
लेकिन जब तुम कपड़े बदलो। ‘रसोई का पर्दा थोड़ा सा खुला छोड़ देना। मैं हॉल में बैठ कर तुम्हें ब्रा और पेंटी में देख लूँगा।’
दीदी मेरी बातें सुन कर बोलीं- नहीं सोनू, फिर भी देखते हैं।
फिर हम लोग चुप हो गए और अपने घर पहुँच गए। हमने घर पहुँच कर देखा कि माँ रसोई में खाना बना रही हैं।
हम लोगों ने पहले 5 मिनट तक रेस्ट किया और फिर दीदी अपनी मैक्सी उठा कर रसोई में कपड़े बदलने चली गईं। मैं हॉल में ही बैठा रहा।
रसोई में पहुँच कर दीदी ने पर्दा खींचा और पर्दा खींचते समय उसको थोड़ा सा छोड़ दिया और मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुरा दीं और हल्के से आँख मार दीं।
मैं चुपचाप अपनी जगह से उठ कर पर्दे के पास जा कर खड़ा हो गया। दीदी मुझसे सिर्फ़ 5 फ़ीट की दूरी पर खड़ी थीं और माँ हम लोग की तरफ़ पीठ करके खाना बना रही थीं। माँ दीदी से कुछ बातें कर रही थीं।
दीदी माँ की तरफ़ मुड़ कर माँ से बातें करने लगी फिर दीदी ने धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उठा कर अपने सर के ऊपर ले जाकर धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उतार दीं।
टी-शर्ट के उतरते ही मुझे आज की खरीदीं हुई ब्रा दिखने लगी। वाह क्या ब्रा थीं।
अधिक सेक्स कहानियाँ : सुन्दर लड़की की चूत की सील तोड़ी
फिर दीदी ने फ़ौरन अपने हाथों से अपनी स्कर्ट की इलास्टिक को ढीला किया और अपनी स्कर्ट भी उतार दीं। अब दीदी मेरे सामने सिर्फ़ अपनी ब्रा और पेंटी में थीं।
दीदी ने क्या मस्त ब्रा और मैचिंग की पेंटी खरीदीं है। मेरे पैसे तो पूरे वसूल हो गए। दीदी ने एक बहुत सुंदर नेट की ब्रा खरीदी थीं और उसके साथ पेंटी में भी खूब लेस लगा हुआ था।
मुझे दीदी की ब्रा से दीदी की चूचियों के आधे-आधे दर्शन भी हो रहे थे। फिर मेरी आँखें दीदी की पेट और उनकी दिलकश नाभि पर जा टिकीं।
दीदी की पेंटी इतनी टाइट थी कि मुझे उनके पैरों के बीच उनकी चूत की दरार साफ़-साफ़ दिख रही थी। उसके साथ-साथ दीदी की चूत के होंठ भी दिख रहे थे।
मुझे पता नहीं कि मैं कितनी देर तक अपनी दीदी को ब्रा और पेंटी में अपनी आँखें फाड़-फाड़ कर देखता रहा। मैंने दीदी को सिर्फ़ एक या दो मिनट ही देखा होगा। लेकिन मुझे लगा कि मैं कई घंटो से दीदी को देख रहा हूँ।
दीदी को देखते-देखते मेरा लौड़ा पैंट के अंदर खड़ा हो गया और उसमें से लार निकलने लगी। मेरे पैर कामुकता से कांपने लगे।
सारे वक़्त दीदी मुझसे आँखें चुरा रही थीं। शायद दीदी को अपने छोटे भाई के सामने ब्रा और पेंटी में खड़ी होना कुछ अटपटा सा लग रहा था।
जैसे ही दीदी ने मुझे देखा, तो मैंने इशारे से दीदी पीछे घूम जाने के लिए इशारा किया। दीदी धीरे-धीरे पीछे मुड़ गईं लेकिन अपना चेहरा माँ की तरफ़ ही रखा।
मैं दीदी को अब पीछे से देख रहा था। दीदी की पेंटी उनके चूतड़ों में चिपकी हुई थी।
मैं दीदी के मस्त चूतड़ देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि अगर मैं दीदी को पूरी नंगी देखूँगा तो शायद मैं अपने पैंट के अंदर ही झड़ जाउँगा।
थोड़ी देर के बाद दीदी मेरी तरफ़ फिर मुड़ कर खड़ी हो गईं और अपनी मैक्सी उठा लीं और मुझे इशारा किया कि मैं वहाँ से हट जाऊँ।
मैंने दीदी को इशारा किया कि अपनी ब्रा उतारो और मुझे नंगी चूची दिखाओ। दीदी बस मुस्कुरा दीं और अपनी मैक्सी पहन लीं।
मैं फिर भी इशारा करता रहा लेकिन दीदी ने मेरी बातों को नहीं माना। मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया।
दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गईं। अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गईं।
मैं दीदी को सिर्फ़ ब्रा और पेंटी में देख कर इतना गर्मा गया था कि अब मुझको भी बाथरूम जाना था और मुट्ठ मारना था। मेरे दिमाग़ में आज शाम की हर घटना बार-बार घूम रही थी।
पहले हम लोग शॉपिंग करने मार्केट गए, फिर हम लोग समुंदर के किनारे गए, फिर हम लोग एक पत्थर के पीछे बैठे थे।
फिर मैंने दीदी की चूचियों को पकड़ कर मसला था और दीदी चूची मसलवा कर झड़ गईं, फिर दीदी एक पब्लिक टॉयलेट में जाकर अपनी पेंटी और ब्रा चेंज की थी।
एकाएक मेरे दिमाग़ यह बात आई कि दीदी की उतरी हुई पेंटी अभी भी बैग में ही होगी। मैंने रसोई में झाँक कर देखा कि माँ अभी खाना पका रही हैं और झट से उठ कर गया और बैग में से दीदी उतरी हुई पेंटी निकाल कर अपनी जेब में रख ली।
मैंने जल्दी से जाकर के बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपना जीन्स का पैंट उतार दिया और साथ-साथ अपना अंडरवियर भी उतार दिया।
फिर मैंने दीदी की गीली पेंटी को खोला और और उसे उल्टा किया। मैंने देखा कि जहाँ पर दीदी की चूत का छेद था वहाँ पर सफ़ेद-सफ़ेद गाढ़ा-गाढ़ा चूत का पानी लगा हुआ है, जब मैंने वो जगह छुई तो मुझे चिपचिपा सा लगा।
मैंने पेंटी अपने नाक के पास ले जाकर उस जगह को सूंघा। मैं धीरे-धीरे अपने दूसरे हाथ को अपने लौड़े पर फेरने लगा।
दीदी की चूत से निकली पानी की महक मेरे नाक में जा रही थी, और मैं पागल हुआ जा रहा था। मैं दीदी की पेंटी की चूत वाली जगह को चाटने लगा। वाह दीदी की चूत के पानी का क्या स्वाद है, मजा आ गया।
मैं दीदी की पेंटी को चाटता ही रहा और यह सोच रहा था कि मैं अपनी दीदी की चूत चाट रहा हूँ। मैं यह सोचते-सोचते झड़ गया। मैं अपना लंड हिला-हिला कर अपना लंड साफ़ किया और फिर पेशाब की और फिर दीदी की पेंटी और ब्रा अपने जेब में रख कर वापस हॉल में पहुँच गया।
थोड़ी देर के बाद जब दीदी को अपनी भीगी पेंटी की याद आई तो वो उसको बैग में ढूँढने लगीं। शायद दीदी को उसे साफ़ करना था। दीदी को उनकी पेंटी और ब्रा बैग में नहीं मिली।
थोड़ी देर के बाद दीदी ने मुझे कुछ अकेला पाया तो मुझ से पूछा- “मुझे अपनी पुरानी पेंटी और ब्रा बैग में नहीं मिल रही है।”
मैंने दीदी से कुछ नहीं कहा और मुस्कुराता रहा।
‘तू हँस क्यों रहा हैं? इसमें हँसने की क्या बात है।’ दीदी ने मुझसे पूछा।
मैंने दीदी से पूछा- तुम्हें अपनी पुरानी पेंटी और ब्रा क्यों चाहिए? तुम्हें तो नई ब्रा और पेंटी मिल गई।
तब कुछ-कुछ समझ कर मुझसे पूछा- उनको तुमने लिया है?
मैं भी कह दिया- हाँ, मैंने लिया है। वो दोनों अपने पास रखना है, तुम्हारी गिफ़्ट समझ कर।
तब दीदी बोलीं- सोनू, वो गंदे हैं।
मैं मुस्कुरा कर दीदी से बोला- मैंने उनको साफ़ कर लिया।
लेकिन दीदी ने परेशान हो कर मुझसे पूछा- क्यों?
मैंने दीदी से कहा- मैं बाद में दे दूंगा।
अब माँ कमरे आ गईं थीं। इसलिए दीदी ने और कुछ नहीं पूछा।
अगले सुबह मैंने दीदी से पूछा- क्या वो मेरे साथ दोपहर के शो में सिनेमा जाना चाहेंगी?
दीदी ने हँसते हुए पूछा- कौन दिखायेगा?
मैं भी हँस के बोला- मैं।
दीदी बोलीं- मुझे क्या पता तेरे को कौन सा सिनेमा देखने जाना है।
मैंने दीदी से बोला- हम लोग न्यू थियेटर चलें?
वो सिनेमा हॉल थोड़ा सा शहर से बाहर है।
बठाये अपने लंड की ताकत! मालिस और शक्ति वर्धक गोलियों करे चुदाई का मज़ा दुगुना!
‘ठीक है, चल चलें।’ दीदी मुझसे बोलीं।
असल में दीदी के साथ सिनेमा देखने का सिर्फ़ एक बहाना था। मेरे दिमाग़ में और कुछ घूम रहा था। सिनेमा के बाद मैं दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था।
कहानी जारी रहेगी।