नौकरानी रानी के साथ चुदाई का मज़ा

यह स्टोरी एक महीने पुरानी है।

हाय फ़्रेंड्स आई एम नील फ़्रोम भोपाल। आप लोगों ने मेरी कहानी चाची का अकेलापन पढ़ी। काफ़ी अच्छा रिस्पोंस आया, अच्छा लगा। अब मैं आप लोगों को एक नयी कहानी बताने जा रहा हूँ।

अब हम लोग भोपाल में ही शिफ़्ट हो गये थे। जैसा कि आप लोगों को मालूम है कि चाची को चोद कर मुझे चोदने का शौक लग गया था। तो लंड चोदने के लिये तड़पता रहता है।

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हमारे घर में पार्ट-टाइम नौकरानियां काम करती हैं। लेकिन कोई भी सुंदर नहीं थी। मम्मी बड़ी होशियार थीं। सब काली कलूटी और भद्दी भद्दी छांट छाँट कर रखती थीं। जानती थी लड़का बहुत ही चालु है।

आखिर में जब कोई नहीं मिली, तो एक लड़की को रखना ही पड़ा। जो बीसेक साल की मस्त जवान कुंवारी लड़की थी। साँवला रंग था और क्या जवान, सुंदर ऐसी कि देख कर ही लंड खड़ा हो जाए। मम्मे ऐसे गोल गोल और निकलते हुए कि ब्लाउज़ में समाए ही नहीं।

बस मैं मौके की तलाश में था। क्योंकि चोदने के लिये एकदम मस्त चीज़ थी। सोच सोच कर मैंने कई बार मुठ मारा। बहुत ज़ोर से तमन्ना थी, कब मौका मिले और कब मैं इसकी बुर में अपना लंड घुसा दूं।

वो भी पैनी निगाहों से मुझे देखती रहती थी। मैं उसके बदन को चोरी चोरी से नापता रहता था। मन ही मन में कई बार उसे नंगी कर दिया। उसकी गुलाबी चूत को कई बार सोच सोच कर मेरा लंड गीला हो जाता था और खड़ा होकर फड़फड़ा रहा होता। हाथ मचलते रहते कब उसकी गोल गोल चूचियों को दबाऊं।

एक बार चाय लेते समय जब मैंने उसे छुआ, तो मानो करेंट सा लग गया। वो शरमाते हुए खिलखिला पड़ी और भाग गयी। मैंने कहा मौका आने दे, रानी तुझे तो खूब चोदुंगा। लंड तेरी चिकनी बुर में डाल कर भूल जाऊंगा। चूची को चूस चूस कर प्यास बुझाउंगा और दबा दबा कर मज़े लूंगा। होठों को तो खा ही जाउंगा। रानी उसका प्यारा सा नाम था।

कहते हैं उसके घर में देर है पर अंधेर नहीं। इतवार था उस दिन और मेरे लंड देव तो उछल गये। मैं मौका चूकने वालों में से नहीं था। लेकिन शुरु कैसे करूँ। अगर चिल्लाने लगी तो? गुस्सा हो गयी तो? दोस्तो, तुम यह जान लो कि लड़कियां कितना ही शरमाये, लेकिन उनके दिल में लालसा होती है कि कोई उनको छेड़े और चोदे।

मैंने रानी को बुलाया और उसे देखते हुए कहा – रानी, तुम कपड़े इतने कम क्यों पहनती हो?

वह बोली – क्यूं साहब, क्या कम है?

मैंने जवाब दिया – देखो, ब्लाउज़ के नीचे कोई ब्रा नहीं है। सब दिखता है। लड़के छेड़ेंगे तुझे।

वो बोली – बाबुजी, इतने पैसे कहां कि ब्रा खरीद सकूं। आप दिलवाओगे?

मैंने कहा – दिलवा तो मैं दूँगा… लेकिन पहले बता कि, क्या आज तक किसी लड़के ने तेरे बदन को छेड़ा है?

उसने जवाब दिया – नहीं साहबजी।

मैंने कहा – इसका मतलब कि तू एकदम कुंवारी है?

“जी साहबजी।”

“अगर मैं कहूं कि तू मुझे बहुत अच्छी लगती है, तो तू नाराज़ तो नहीं होगी?”

“नाराज़ क्यों होने लगी साहबजी? आप बहुत अच्छे हैं।”

बस यही उसका सिगनल था मेरे लिये। मैंने हिम्मत करके पूछ लिया – अगर मैं तुझे थोड़ा सा प्यार करूं, तो तुझे बुरा तो नहीं लगेगा?

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अपने पैर की उंगलियों को वो ज़मीन पर मसलती हुई बोली – आप तो बड़े वो हो साहब।

मैंने आगे बढ़ते हुए कहा – अच्छा अपनी आँखें बंद कर ले और अभी खोलना नहीं।

उसने आँखें बंद की और हल्के से मुँह ऊपर की तरफ़ कर दिया। मैंने कहा – बेटा लोहा गर्म है, मार दे हथौड़ा।

आहिस्ता से पहले मैंने उसके गालों को अपने हाथों में लिया और फिर रख दिये, अपने होंठ उसके होंठों पर। हाय क्या गज़ब की लड़की थी। क्या टेस्ट था। संसार की महंगी से महंगी शराब उसका मुकाबला नहीं कर सकती थी। ऐसा नशा छाया कि सब्र के सारे बांध टूट गये।

मेरे होंठों ने कस कर उसके होंठों को चूसा और चूसते ही रहे। मेरे दोनों हाथों ने ज़ोर से उसके बदन को दबोच लिया। मेरी जीभ उसकी जीभ का टेस्ट लेने लगी। इस दौरान उसने कुछ नहीं कहा। बस मज़ा लेती रही।

अचानक उसने आँखें खोली और बोली – साहबजी, बस, कोई देख लेगा।

मैंने कहा – रानी, अब तो मत रोको मुझे। सिर्फ़ एक बार।

“एक बार, क्या साहब?”

मैंने उसके कान में फुसफुसा कर कहा – अपनी बुर चुदवाएगी मुझसे? एक बार अपनी बुर में मरा लंड घुसवायेगी? देख मना मत करना। बहुत खूबसूरत है तू … मेरा दिल आ गया है तुझ पर!

यह कह कर, मैंने रानी को कस के पकड़ लिया और दायें हाथ से उसकी बायीं चूची को दबाने लगा। मुँह से मैं उसके गालों पर, गले पर, होंठों पर और हर जगह पर चूमने लगा पागलों की तरह। क्या चूची थी, मानो सख्त संतरे। दबाओ तो चिटक चिटक जाये। उफ़, मलाई थी पूरी की पूरी।

रानी ने जवाब दिया – साहब जी, मैंने यह सब कभी नहीं किया। मुझे शर्म आ रही है।

उखड़ी सांसों से मैंने कहा – हाय मेरी जान रानी, बस इतना बता, अच्छा लगा या नहीं। मज़ा आ रहा है या नहीं? मेरा तो लंड बेताब है जाने मन। और मत तड़पा।

“साहबजी, जो करना है जल्दी करो, कोई आ जायेगा तो?”

बस मैंने उसके फूल जैसे बदन को उठाया और बिस्तर पर ले गया और लिटा दिया। कस कर चूमते हुए मैंने उसके कपड़ों को उतारा। फिर अपने कपड़ों को जल्दी से निकाला। सात इंच लम्बा मेरा लंड फड़फड़ाते हुए बाहर निकला। देख कर उसकी आँखें बड़ी हो गयी, बोली – हाय यह क्या है? यह तो बहुत बड़ा है।

“पकड़ ले इसे मेरी जान।” कहते हुए मैंने उसके हाथ को अपने लंड पर रख दिया।

उसके बदन को पहली बार नंगा देख कर, तो लंड ज़ोर से उछलने लगा। चूची ऐसी मस्त थी कि पूछो मत। चूत पर बाल इतने अच्छे लग रहे थे कि मेरे हाथ उसकी तरफ़ बढ़ ही गये। क्या गर्म चूत थी। उंगली आहिस्ता से अंदर घुसाई। रस बह रहा था और उसकी बुर गीली हो गयी थी। गुलाबी गुलाबी बुर को उंगलियों से अलग किया, और मैंने अपना लंड आहिस्ता से घुसाया। हाथ उसकी चूचियों को मसल रहे थे। मुँह से उसके होंठों को मैं चूस रहा था।

“आह, साहब जी, धीरे … दुःख रहा है।”

“रानी मज़ा आ रहा है ना?”

“साहबजी, जल्दी करिये न जो भी करना है।”

“हाय मेरी जान, बोल क्या करूं?”

“डालिये न। कुछ करिये न।”

“रानी, बोल क्या करूं?” कहते हुए मैंने लंड को थोड़ा और घुसाया।

“अपना यह डाल दीजिये।”

“बोल न, कहाँ डालूं मेरी जान, क्या डालूं?”

“आप ही बोलिये न साहबजी, आप अच्छा बोलते हैं।”

“अच्छा, यह मेरा लंड तेरी चिकनी और प्यारी बुर में घुस गया और अब ये तुझे चोदेगा।”

“चोदिये न, साहबजी।”

उसके मुँह से सुन कर तो लंड और भी मस्त हो गया – हाय रानी, क्या बुर है तेरी, क्या चूची है तेरी। कहां छुपा कर रखा था इतने दिन। पहले क्यों नहीं चुदवाया।

“साहबजी, आपका भी लंड बहुत मज़ेदार है। बस चोद दीजिये जल्दी से।” और उसने अपने चूतड़ ऊपर कर लिये।

अब मैंने उसकी दाहिनी चूची को मुँह में लिया और चूसने लगा। एक हाथ से दूसरी चूची को दबाते हुए, मसलते हुए, मैं उछल उछल कर ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा। जन्नत का मज़ा आ रहा था। ऐसा लग रहा था बस चोदता ही रहूँ, चोदता ही रहूँ इस प्यारी प्यारी चूत को। मेरा लंड ज़ोर ज़ोर से उसकी गुलाबी गीली गर्म गर्म बुर को चोद रहा था।

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“हाय, रानी चुदवाने में मज़ा आ रहा है न। बोल मेरी जान, बोल।”

“हां साहब, मज़ा आ रहा है। बहुत मज़ा आ रहा है। साहब आप बहुत अच्छा चोदते हैं। साहब, यह मेरी बुर आपके लंड के लिये ही बनी है। है न साहब। साहब, चूची ज़ोर से दबाइये न। साहब, ऊऊओह, मज़ा आ गया, ऊऊह्हह्ह।”

अचानक, हम दोनों साथ साथ ही झड़े। मैंने अपना सारा रस उसकी प्यारी प्यारी बुर में घोल दिया। हाय क्या बुर थी। क्या लड़की थी। गर्म गर्म हलवा। नहीं उससे भी ज्यादा टेस्टी।

मैंने पूछा – रानी, तेरा महीना कब हुआ था री?

शरमाते हुए बोली – परसों ही खत्म हुआ। आप बड़े वो हैं। यह भी कोई पूछता है।

बांहों में भर कर होंठों को चूमते, चूचियों को दबाते हुए मैंने कहा – मेरी जान, चुदवाते चुदवाते सब सीख जायेगी।

एकदम सेफ़ था। प्रग्नेंट होने का कोई चांस नहीं था अभी। दोस्तो, कह नहीं सकता, दूसरी बार जब उसे चोदा, तो पहली बार से ज्यादा मज़ा आया। क्योंकि लंड भी देर से झड़ा। चूत उसकी गीली थी। चूतड़ उछाल उछाल कर चुदवा रही थी साली। उसकी चूचियों को तो मसल मसल कर और चूस चूस कर निचोड़ ही दिया मैंने। जाने फिर कब मौका मिले।

आज इसकी बुर चूस ही लो। बुर का स्वाद तो इतना मज़ेदार था कि कोई भी शराब में ऐसा नशा नहीं। चोदते समय तो मैंने उसके होंठों को खा ही लिया। “यह मज़ा ले मेरे लंड का मेरी जान। तेरी बुर में मेरा लंड, इसी को चुदाई कहते हैं रानी। कहां छुपा रखी थी यह चूत जानी।” कहते हुए मैं बस चोद रहा था और मज़ा लूट रहा था।

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“चोद दीजिये साहबजी, चोद दीजिये। मेरी बुर को चोद दीजिये।” कह कह कर चुदवा रही थी मेरी रानी।

दोस्तो, चुदाई तो खत्म हुई लेकिन मन नहीं भरा, उसे दबोचते हुए मैंने कहा – रानी, मौका निकाल कर चुदवाती रहना। तेरी बुर का दिवाना है यह लंड। मालामाल कर दूंगा जाने मन।

यह कह कर मैंने उसे दो सौ रुपये दिये और चूमते हुए मसलते हुए विदा किया।

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