लड़की पटाने की कला

(Ladki patane ki kala)

छोटे भाई को तडपाके मज़े लिये – भाग १

मेरा नाम आशा है. मेरा छ्होटा भाई बारहवी मैं पढ़ता है. वह गोरा चित्ता और क़रीब मेरे ही बराबर लंबा भी है. मैं इस समय 21 की हूँ और वह 18 का. मुझे भय्या के गुलाबी हूनत बहुत प्यारे लगते हैं, दिल करता है की बस चबा लूं.

पापा गल्फ़ मैं है और माँ गोवेर्नमेंट जॉब मैं. माँ जब जॉब की वजह से कहीं बाहर जाती, तो घर मैं बस हम दो भाई बहन ही रह जाते थे. मेरे भाई का नाम अमित है और वह मुझे दीदी कहता है. एक बार माँ कुच्छ दीनो के लिए बाहर गयी थी. उनकी इलेक्शन में ड्यूटी लग गयी थी. माँ को एक हफ़्ते बाद आना था. रात मैं डिनर के बाद कुच्छ देर टीवी देखा, फिर अपने-अपने कमरे मैं सोने के लिए चले गये.

क़रीब एक आध घंटे बाद प्यास लगने की वजह से मेरी नींद खुल गयी. अपनी सीदे तबले पैर बोट्थले देखा, तो वह ख़ाली थी. मैं उठकर कित्चें मैं पानी पीने गयी. तो लौटते समय देखा की अमित के कमरे की लाइट ऑन और दरवाज़ा भी तोड़ा सा खुला था. मुझे लगा की शायद वह लाइट ओफ़्फ़ करना भूल गया है, मैं ही बंद कर देती हूँ. मैं चुपके से उसके कमरे मैं गयी, लेकिन अंदर का नज़ारा हैरान मैं हैरान हो गयी

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अमित एक हाथ मैं कोई किताब पकड़कर उसे पढ़ रहा था और दूसरे हाथ से अपने तने हुए लंड को पकड़कर मुठ मार रहा था. मैं कभी सोच भी नही सकती की इतना मासूम लगने वाला बारविह का यह छोकरा ऐसा भी कर सकता है. मैं डोर के पास चुपचाप खड़ी उसकी हरकत देखती रही, लेकिन शायद उसे मेरी उपस्थिति का आभास हो गया. उसने मेरी तरफ़ मुँह फेरा और दरवाज़े पैर मुझे खड़ा हैरान चौंक गया. वह बस मुझे देखता रहा और कुच्छ भी ना बोल पाया.

फिर उसने मुँह फैर कर किताब तकिये के नीचे पा दी. मुझे भी समझ ना आया की क्या करूँ! मेरे दिल मैं यह ख़्याल आया की कल से यह लड़का मुझसे शरमायगा और बात करने से भी कत्राएगा. घर मैं इसके अलावा और कोई है भी नही जिससे मेरा मन बहलता. मुझे अपने दिन याद आए. मैं और मेरा एक कज़ीन इसी उमर के थे, जबसे हमने मज़ा लेना शुरू किया था. तो इसमे कौन सी बड़ी बात अगर यह मुठ मार रहा था.

मैं धीरे-धीरे उसके पास गयी और उसके कंधे पैर हाथ रखकर उसके पास ही बैठ गयी वह चुपचाप रहा. रहा. मैने उसके कंधों को दबाते हुए कहा, “अरे यार अगर यही करना था, तो कम से कम दरवाज़ा तो बंद कर लिया होता.”

वह कुच्छ नही बोला, बस मुँह दूसरी तरफ़ किए रहा. मैने अपने हाथों से उसका मुँह अपनी तरफ़ किया और बोली “अभी से ये मज़ा लेना शुरू कर दिया. कोई बात नही मैं जाती हूँ, तू अपना मज़ा पूरा कर ले. लेकिन ज़रा एह किताब तो दिखा.”

मैने तकिये के नीचे से किताब निकल ली. एह हिंदी मैं लिखे मास्ट्रँ की किताब थी. मेरा काज़ीन भी बहुत सी मास्ट्रँ की किताबे लता था और हम दोनो ही मज़े लेने के लिए साथ-साथ पढ़ते थे. चुदाई के समय किताब के डायलॉग बोलकर एक दूसरे का जोश बढ़ते थे.

जब मैं किताब उसे देकर बाहर जाने के लिए उठी तो वह पहली बार बोला, “दीदी सारा मज़ा तो आपने ख़राब कर दिया, अब क्या मज़ा करूँगा.”

“अरे अगर तुमने दरवाज़ा बंद किया होता तो मैं आती ही नही.” में बोली.

“और अगर आपने देख लिया था तो चुपचाप चली जाती.” वह बोला.

अगर मैं बहस मैं जीतना चाहती तो आसानी से जीत जाती. लेकिन मेरा वह कज़ीन क़रीब 6 मंथ्स से नहीं आया था, इसलिए मैं भी किसी से मज़ा लेना चाहती ही थी. अमित मेरा छोटा भाई था और बहुत ही सेक्सी लगता था, इसलिए मैने सोचा की अगर घर मैं ही मज़ा मिल जाए तो बाहर जाने की क्या ज़रूरत. फिर अमित का लौड़ा अभी कुंवारा था. मैं कुंवारे लंड का मज़ा पहली बार लेती इसलिए मैने कहा, “चल अगर मैने तेरा मज़ा ख़राब किया है तो मैं ही तेरा मज़ा वापस कर देती हूँ.”

फिर मैं पलंग पर बैठ गयी और उसे चित लिटाया और उसके मुरझाए लंड को अपनी मुती मैं लिया. उसने बचने की कोशिश की पर मैने लंड को पकड़ लिया था. अब मेरे भाई को यक़ीन हो चुका था की मैं उसका राज़ नही खोलूँगी, इसलिए उसने अपनी टांगे खोल दी. ताकि मैं उसका लंड ठीक से पकड़ सकूँ. मैने उसके लंड को बहुत हिलाया दुलाया, लेकिन वह खड़ा ही नही हूवा. वह बड़ी मायूसी के साथ बोला “देखा दीदी अब खड़ा ही नही हो रहा है”

“अरे क्या बात करते हो. अभी तुमने अपनी बहन का कमाल कहाँ देखा है! मैं अभी अपने प्यारे भाई का लंड खड़ा कर दूँगी.” ऐसा कह मैं भी उसकी बगल मैं ही लेट गयी. मैं उसका लंड सहलने लगी और उसने किताब पढ़ते हुए कहाँ “दीदी मुझे शरम आती है”

“साले अपना लंड बहन के हाथ मैं देते शरम नही आई.” मैने ताना मारते हुवे कहा.

“ला मैं पढ़ती हूँ” और मैने उसके हाथ से किताब ले ली.

मैने एक स्टोरी निकली, जिसमे भाई बहन के डियलोग थे. और उससे कहा, “मैं लड़की वाला बोलूँगी और तुम लड़के वाला. मैने पहले परा, “अरे राजा मेरी चूचियों का रस तो बहुत पी लिया, अब अपना बनाना स्टोरी भी तो टेस्ट करओ.”

“अभी लो रानी पैर मैं डरता हूँ, इसलिए की मेरा लंड बहुत बड़ा है तुम्हारी नाज़ुक कसी चुत मैं कैसे जाएगा.”

और इतना पढ़ कर हम दोनो ही मुस्करा दिए, क्योंकि यहा हालत बिल्कुल उल्टे थे. मैं उसकी बड़ी बहन थी और मेरी चुत बड़ी थी और उसका लंड छोटा था. वह शर्मा गया, लेकिन थोड़ी सी पढ़ाई के बाद ही उसके लंड मैं जान भर गयी और वह टन्णकर क़रीब 6 इंच का लंबा और 1.5 का मोटा हो गया. मैने उसके हाथ से किताब लेकर कहा, “अब इस किताब की कोई ज़रूरत नही. देख अब तेरा खड़ा हो गया है तो बस दिल मैं सोच ले की तू किसी की चोद रहा है और मैं तेरी मुठ मार देती हूँ.”

मैं अब उसके लंड की मुठ मार रही थी और वह मज़ा ले रहा था. बीच बीच मैं सिसकारियाँ भी भरता था. एकाएक उसने चुतड़ उठाकर लंड ऊपर की ऊर तेला और बोला, “बस दीदी” और उसके लंड ने गाढ़ा पानी फैंक दिया जो मेरी हथेली पैर गिरा. मैं उसके लंड के रस को उसके लंड पैर लगती उसी तरह सहलती रही और कहा, “क्यों भय्या मज़ा आया?”

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“सच दीदी बहुत मज़ा आया.” “अच्छा यह बता की ख़्यालों मैं किसकी ले रहे थे?”

“दीदी शरम आती है बाद मैं बताऊंगा.” इतना कह उसने तकिये मैं मुँह छुपा लिया.

“अच्छा चल अब सो जा नींद अच्छी आएगी. और आगे से जब ये करना हो तो दरवाज़ा बंद कर लिया करना.”

“अब क्या करना दरवाज़ा बंद करके! दीदी, तुमने तो सब देख ही लिया है”

“चल शैतान कही के.” मैने उसके गाल पैर हल्की सी छपत मारी और उसके होठ को चूमा. मैं और क़िस करना चाहती थी पर आगे के लिए छोड़ कर वापस अपने कमरे मैं आई. अपनी शलवार कमीज़ उतर कर नाइटी पहनने लगी, तो देखा की मेरी पेंटी बुरी तरह भीगी हिई है. अमित के लंड का पानी निकलते-निकलते मेरी चुत ने भी पानी छोड़ दिया था. अपना हाथ पेंटी मैं डालकर अपनी चुत सहलने लगी का स्पर्श पाकर मेरी चुत फिर से सिसकने लगी और मेरा पूरा हाथ गीला हो गया.

चुत की आग बुझाने का कोई रास्ता नही था सिवा अपनी उंगली के. मैं बेद पैर लेट गयी. अमित के लंड के साथ खेलने से मैं बहुत एक्साइटेड थी और अपनी प्यास बुझाने के लिए अपनी बीच वाली उंगली जड़ तक चुत मैं डाल दी. तकिये को सीने से कसकर भींचा और जांघो के बीच दूसरा तकिया दबा आँखे बंद की और अमित के लंड को याद करके उंगली अंदर बाहर करने लगी. इतनी मस्ती चढ़ गयी थी की क्या बताए! मन कर रहा था की अभी जाकर अमित का लंड अपनी चुत मैं डलवा लू. उंगली से चुत की प्यास और बढ़ गयी, इसलिए उंगली निकल तकिये को चुत के ऊपर दबा औंधे मुँह लेटकर धक्के लगाने लगी, बहुत देर बाद चुत ने पानी छोड़ा और मैं वैसे ही सो गयी.

सुबह उठी तो पूरा बदन अनबूझी प्यास की वजह से सुलग रहा था. लाख रग़ाद लो तकिये पैर लेकिन चुत मैं लंड घुसकर जो मज़ा देता है उसका कहना ही क्या! बेद पर लेते हुवे मैं सोचती रही की अमित के कुंवारे लंड को कैसे अपनी चुत का रास्ता दिखाया जाए. फिर उठकर तैयार हुई. अमित भी स्कूल जाने को तैयार था. नाश्ते की टेबल पर हम दोनों आमने-सामने थे. नज़रे मिलते ही रात की याद ताज़ा हो गयी और हम दोनों मुस्करा दिए. अमित मुझसे कुच्छ शर्मा रहा था की कहीं मैं उसे छेड़ ना दूं. मुझे लगा की अगर अभी कुच्छ बोलूँगी तो वह बिदक जाएगा इसलिए चाहते हुए भी ना बोली.

चलते समय मैने कहा, “चलो आज तुम्हे अपने स्कूटेर पर सचूल छोड़ दूं.” वह फ़ौरन तय्यार हो गया और मेरे पीछे बैठ गया. वह तोड़ा स्कूछता हूवा मुझसे अलग बैठा था. वह पीछे की स्टेपनी पकड़े था. मैने स्पीड से स्कूटेर चलाया तो उसका बालंसे बिगड़ गया और संभालने के लिए उसने मेरी कमर पकड़ ली. मैं बोली, “कसकर पकड़ लो शर्मा क्यों रहे हो?”

“अच्छा दीदी” और उसने मुझे कसकर कमर से पकड़ लिया और मुझसे चिपक सा गया. उसका लंड खड़ा हो गया था और वह अपनी जांघो के बीच मेरे चुतड़ को जकड़े था. “क्या रात वाली बात याद आ रही है अमित?” “दीदी रात की तो बात ही मत करो. कहीं ऐसा ना हो की मैं स्कूल मैं भी शुरू हो जौन.” “अच्छा तो बहुत मज़ा आया रात मैं” “हाँ दीदी इतना मज़ा ज़िंदगी मैं कभी नही आया. काश कल की रात कभी ख़तम ना होती. आपके जाने के बाद मेरा फिर खड़ा हो गया था पर आपके हाथ मैं जो बात थी वो कहाँ. ऐसे ही सो गया.”

“तू मुझे बुला लिया होता. अब तो हम तुम दोस्त हैं एक दूसरे के काम आ सकते हैं” “तू फिर दीदी आज रात का प्रोग्राम पक्का.” “चल हट केवल अपने बारे मैं ही सोचता है ये नही पूछता की मेरी हालत कैसी है? मुझे तो किसी चीज़ की ज़रूरत नही है? चल मैं आज नही आती तेरे पास.” “अरे आप तो नाराज़ हो गयी दीदी. आप जैसा कहेंगी वैसा ही करूँगा. मुझे तो कुच्छ भी पता नही. अब आप ही को मुझे सब सीखना होगा.”

तब तक उसका स्कूल आ गया था. मैने स्कूटेर रोका और वह उतरने के बाद मुझे देखने लगा, लेकिन मैं उसपर नज़र डाले बग़ैर आगे चल दी. स्कूटेर के शीशे मैं देखा की वह मायूस सा स्कूल मैं जा रहा है. मैं मन ही मन बहुत ख़ुश हुई की चलो अपने दिल की बात का इशारा तो उसे दे ही दिया.”

शाम को मैं अपने कॉलेज से जल्दी ही वापस आ गयी थी. अमित 2 बजे वापस आया तो मुझे घर पर देखकर हैरान रह गया. मुझे लेता देखकर बोला, “दीदी आपकी तबीयत तो ठीक है “ठीक ही समझो, तुम बताओ कुछ हॉमेवोर्क मिला है क्या?” “दीदी कल संडे है ही. वैसे कल रात का काफ़ी हॉमेवोर्क बचा हूवा है” मैने हँसी दबाते हुवे कहा, “क्यो पूरा तो करवा दिया था. वैसे भी तुमको यह सब नही करना चाहिए. सेहत पर असर पड़ता है कोई लड़की पता लो, आजकल की लड़किया भी इस काम मैं काफ़ी इंट्रेस्टेड रहती हैं” “दीदी आप तो ऐसे कह रही हैं जैसे लड़कियाँ मेरे लिए शलवार नीचे और कमीज़ ऊपर किए तय्यार है की आओ पैंटी खोलकर मेरी ले लो.” “नही ऐसी बात नही है लड़की पटानि आनी चाहिए.”

फिर मैं उठकर नाश्ता बनाने लगी मन मैं सोच रही थी की कैसे इस कुंवारे लंड को लड़की पटा कर चोदना सीख़ाओं.

लंच  टेबल पर उससे पूच्हा, “अच्छा यह बता तेरी किसी लड़की से दोस्ती है” “हाँ दीदी सुधा से.” “कहाँ तक?” “बस बातें करते हैं और स्कूल मैं साथ ही बैठते हैं” मैने सीधी बात करने के लिए कहा, “कभी उसकी लेने का मनन करता है “दीदी आप कैसी बात करती हैं!” वह शर्मा गया तो मैं बोली, “इसमे शर्मा ने की क्या बात है! मूठ ही तो रोज़ मारता है ख़्यालो मैं कभी सुधा की ली है या नही सच बता.” “लेकिन दीदी ख़्यालो मैं लेने से क्या होता है?” “तू इसका मतलब है की तो उसकी असल मैं लेना चाहता है?” मैने कहा.

“उससे ज़्यादा तो और एक है जिसकी मैं लेना चाहता हूँ, जो मुझे बहुत ही अच्छी लगती है” “जिसकी कल रात ख़्यालो मैं ली थी?” उसने सर हिलाकर हाँ कर दिया पर मेरे बार-बार पूछने पर भी उसने नाम नही बताया. इतना ज़रूर कहा की उसकी चुदाई कर लेने के बाद ही उसका नाम सबसे पहले मुझे बताएगा. मैने ज़्यादा नही पूछा क्योंकि मेरी चुत फिर से गीली होने लगी थी. मैं चाहती थी की इससे पहले की मेरी चुत लंड के लिए बेचैन हो, वह ख़ुद मेरी चुत मैं अपना लंड डालने के लिए गिदगिड़ाए. मैं चाहती थी की वह लंड हाथ मैं लेकर मेरी मिन्नत करे की दीदी बस एक बार चोदने दो. मेरा दिमाग़ ठीक से काम नही कर रहा था इसलिए बोली, “अच्छा चल कपड़े बदल कर आ मैं भी बदलती हूँ.”

वह अपनी यूनिफार्म चेंज करने गया और मैने भी प्लान के मुताबिक़ अपनी शलवार कमीज़ उतर दी. फिर ब्रा और पैंटी भी उतर दी, क्योंकि पटने के मदमस्त मौक़े पर ये दिक्कत करते. अपना देसी पेट्टीकोत और ढीला ब्लौसे ही ऐसे मौक़े पर सही रहते हैं. जब बिस्तर पैर लेटो तो पेट्टीकोत अपने आप आसानी से घुटनो तक आ जाता है और थोड़ी कोशिश से ही और ऊपर आ जाता है. जहाँ तक ब्लौस का सवाल है तो थोड़ा  सा झुको तो सारा माल उछल कर बाहर आ जाता है. बस यही सोचकर मैने पेट्टीकोत और ब्लौस पहना था.

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वह सिर्फ़ प्यजमा और बनियाँ पहनकर आ गया. उसका गोरा चित्ता चिकना बदन मदमस्त करने वाला लग रहा था. एकाएक मुझे एक आईडिया आया. मैं बोली, “मेरी कमर मैं तोड़ा दर्द हो रहा है ज़रा बाम लगा दे.” यह बेद पर लेतने का पेरफ़ेक्ट बहाना था और मैं बिस्तर पर पेट के बल लेट गयी. मैने पेट्टीकोत तोड़ा ढीला बाँधा था इसलिए लेट्टे ही वह नीचे खिसक गया और मेरे कुल्टो के बीच की दरार दिखाए देने लगी. लेट्टे ही मैने हाथ भी ऊपर कर लिए जिससे ब्लौस भी ऊपर हो गया और उसे मालिश करने के लिए ज़्यादा जगह मिल गयी. वह मेरे पास बैठकर मेरी कमर परबाम  लगाकर धीरे धीरे मालिश करने लगा.

उसका स्पर्श(तौछ) बड़ा ही सेक्सी था और मेरे पूरे बदन मैं सिहरन सी दौड़ गयी. थोड़ी देर बाद मैने करवत लेकर अमित की और मुँह कर लिया और उसकी जाँघ पैर हाथ रखकर ठीक से बैठने को कहा. करवत लेने से मेरी चूचियाँ ब्लौस के ऊपर से आधी से ज़्यादा बाहर निकल आई थी. उसकी जाँघ पर हाथ रखे रखे ही मैने पहले की बात आगे बरहाय, “तुझे पता है की लड़की कैसे पटाया जाता है?”

“अरे दीदी अभी तो मैं बच्चा हूँ. ये सब आप बताएँगी तब मालूम होगा मुझे.” बाम लगाने के दौरान मेरा ब्लौस ऊपर खींच गया था, जिसकी वजह से मेरी गोलाईयाँ नीचे से भी झाँक रही थी. मैने देखा की वह एकतक मेरी चूचियों को घूर रहा है. उसके कहने के अंदाज़ से भी मालूम हो गया की वह इस सिलसिले मैं ज़्यादा बात करना चाह रहा है.

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“अरे यार लड़की पटाने के लिए पहले ऊपर ऊपर से हाथ फेरना पड़ता है, ये मालूम करने के लिए की वह बुरा तो नही मानेगी.” “पर कैसे दीदी.” उसने पूच्हा और अपने पैर ऊपर किए. मैने तोड़ा खिसक कर उसके लिए जगह बनाई और कहा, “देख जब लड़की से हाथ मिलाओ तो उसको ज़्यादा देर तक पकड़ कर रखो, देखो कब तक नही छुड़ाती  है और जब पीछे से उसकी आँख बंद कर के पूच्हो की मैं कौन हूँ तो अपना केला धीरे से उसके पीछे लगा दो. जब कान मैं कुच्छ बोलो, तो अपना गाल उसके गाल पैर रग़ड दो. वो अगर इन सब बातों का बुरा नही मानती, तो आगे की सोचो.”

अमित बड़े ध्यान से सुन रहा था. वह बोला, “दीदी सुधा तो इन सब का कोई बुरा नही मानती, जबकि मैने कभी ये सोचकर नही किया था. कभी कभी तो उसकी कमर मैं हाथ डाल देता हूँ, पर वह कुच्छ नही कहती.” “तब तो यार छोकरी तय्यार है और अब तो उसके साथ दूसरा खेल शुरू कर.” “कौन सा दीदी?” “बातों वाला. यानी कभी उसके संतरो की तारीफ़ करके देख, क्या कहती है! अगर मुस्कुराकर बुरा मानती है तो समझ ले की पटने मैं ज़्यादा देर नही लगेगी.”

दोस्तों, में यह कहानी को यहां रोक रही है. कल में आप सब को बताउंगी , क्या में सच में अपने भाई को मेरी चुत छोड़ने के लिए मना पायी या नहीं!

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