(Shadi ka mandap aur chudai)

शादी का मंडप और चुदाई

दोस्तो. मैं सविता सिंह. आपने मेरी सेक्स कहानी शादी में चूत चुदवा कर आई मैं पढ़ी रहे हैं. कि कैसे राजस्थान के एक गाँव में. मैं अपने पति के साथ गई और वहाँ मैंने एक बिल्कुल ही अंजान आदमी से एक नहीं कई बार सेक्स किया और बार बार सेक्स किया।

मेरा सबसे यादगार सेक्स तब हुआ. जब एक तरफ मंडप में लड़की फेरे ले रही थी और दूसरी तरफ मैं अपनी चुदाई करवा रही थी. उसी गैर मर्द शेर सिंह से।

कैसे? लीजिये पढ़िये:

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अगले दिन शादी थी. तो सब तरफ चहल पहल ज़्यादा थी। सुबह से न मेरे पति. न शेर सिंह कोई भी नहीं दिखा। मैं पहले तो सुबह तैयार हुई. मगर दोपहर तक शेर सिंह का कोई पता नहीं। अब उसकी बीवी वहीं थी. मगर उससे भी नहीं पूछ सकती थी।

लोग आए और उन्होंने दोपहर के बाद मंडप भी सजा दिया। शाम के 5 बज गए थे. वैसे तो फेरे रात के 1 बजे के बाद थे. मगर फिर भी घर में औरतों ने शोर मचा रखा था।

मैं एक तरफ बैठी सब देख रही थी. सुन रही थी और जल भुन रही थी कि साला मेरा कोई इंतजाम ही नहीं हो रहा।

इंतज़ार करते करते जब मैं थक गई तो मैं और चंदा दोनों कमरे में बैठी थी. तभी उसकी ब्यूटीशियन आ गई. जिसने चंदा को तैयार करना था. उसने चंदा को तैयार किया तो साथ में मुझे भी मेकअप करके सजा दिया।

मगर दिक्कत यह हुई कि मुझे बहुत से औरतों ने ये कॉम्प्लिमेंट दिया कि मैं दुल्हन से भी ज़्यादा सुंदर लग रही हूँ। मेरे आसपास से जो भी मर्द गुज़रे. उनकी आँखों में भी मेरे रूप के लिए मूक प्रशंसा थी. कुछ एक आँखों में तो मैंने कामुकता भी महसूस करी. जैसे कह रहे हों ‘आज अगर ये मिल जाए तो साली की फाड़ कर रख दूँ।’

मेरे पति जब मुझसे मिले तो उन्होंने भी कहा – आज तो बहुत गजब ढा रही हो. लगता है आज सुहागरात मनानी ही पड़ेगी।

उनका मतलब साफ था कि बहुत जल्द वो मुझसे सेक्स करेंगे.

मगर क्या मैं भी उनसे सेक्स करने को उतावली थी?

मेरा जवाब था. बिल्कुल भी नहीं!

मैं तो शेर सिंह को खोज रही थी. वो मिल जाए और अपने खुरदुरे लंड से मेरी काम पिपासा बुझाये।

कुछ देर बाद वो भी दिख गया. सफ़ेद शेरवानी और चकाचक सफ़ेद कुर्ता पाजामा. सर सुर्ख पगड़ी. लंबा सा लंड आगे को छोड़ा हुआ। अपने कद काठी और बड़ी बड़ी मूँछों के कारण वो पूरा कोई रजवाड़े का मालिक लग रहा था।

जब उसने मुझे देखा तो इशारे से एक तरफ बुलाया। मैं गई तो बोला- सविता जी. लगता है आप मेरा तलाक करवा कर ही दम लोगी।

मैं उसका आशय समझ तो गई. पर अंजान बन कर बोली- क्यों क्या हुआ? आपकी पत्नी को हमारा पता चल गया क्या?

वो हंस कर बोला- अरे नहीं. आप आज इतनी सुंदर लग रही हैं कि दिल करता है. अपनी पत्नी को तलाक दे कर आपसे ही शादी कर लूँ।

मैंने कहा- तो देर किस बात की है. शादी का मंडप तो सजा ही हुआ है. कर लेते हैं शादी!

वो मेरी आँखों में गहरा झांक कर बोला- क्या तुम छोड़ सकती हो अपने पति को?

बेशक ये मेरे लिए मुश्किल था. मगर मैं झूठ ही कह दिया- हाँ. छोड़ दूँगी।

उसके चेहरे पर जैसे खुशी. परेशानी और ना जाने क्या क्या भाव उभरे।

मैंने पूछा- क्या हुआ?

वो बोला- आपने धर्म संकट में डाल दिया। सच में सविता जी. मैं आपसे बहुत प्यार करने लगा हूँ. अब आपके बिना नहीं रह सकता। चलो देखता हूँ. अगर मेरा जुगाड़ फिट बैठा तो मैं अपनी पत्नी को छोड़ दूँगा।

मैं उसके विचार सुन कर थोड़ा विचलित हुई- अरे अरे. शेर सिंह जी. इतनी जल्दी क्या है. अभी देखते हैं. हमारा रिश्ता और कितना आगे बढ़ता है. उसके बाद सोच लेंगे। आप भी यही हैं. मैं भी यहीं हूँ।

वो परेशान हो कर बोला- क्या खाक यहीं हो. आपके पति ने परसों वापिस जाने का प्रोग्राम फिक्स कर लिया. मेरे सामने अपने ताऊजी से बात कर रहा था। परसों आप चली जाओगी. फिर क्या बात होगी हमारी?

मैंने कहा- पर अभी तो परसों जाना है न. परसों तक तो हम अपने इस प्यार भरे रिश्ते का मज़ा ले सकते हैं।

वो बोला- तो ठीक है. आप भी आज दुल्हन बनी हैं. मैं भी आज पूरा सजधज कर आया हूँ. तो आज हम सबके होते हुये प्यार करेंगे।

मैंने कहा- वो कैसे?

वो बोला- बता दूँगा. बस मेरे इशारे का इंतज़ार करना।

उसके बाद हम सब शादी में मसरूफ़ हो गए. मैं चंदा के साथ उसकी बेस्ट फ्रेंड का रोल निभा रही थी. मगर हर कोई दुल्हन को छोड़ मुझे ही घूर रहा था. क्या औरत, क्या मर्द, क्या बच्चा, क्या बूढ़ा! रात के 12 बज कर 50 मिनट का फेरों का टाईम था। घूमते फिरते, नाचते गाते, खाते पीते, बड़ी मुश्किल से शुभ समय आया। जब दूल्हा दुल्हन विवाह मंडप में बैठ गए और पंडित ने मंत्र- उच्चारण शुरू कर दिया तो शेर सिंह ने मुझे इशारा किया। मैं भी चुपके से उठ कर चल दी।

वो मुझे अपने पीछे पीछे सीढ़ियाँ चढ़ा कर घर की बिल्कुल ऊपर वाली छत पर ले गया। वहाँ से नीचे सारा विवाह मंडप. सभी लोग दिख रहे थे।

ऊपर ले जा कर शेर सिंह बोला- अब पंडित के मंत्रोउच्चार के साथ हम भी फेरे लेंगे।

मैंने कहा- तो क्या हम चोरी से शादी करेंगे. घर वालों की मर्ज़ी के खिलाफ?

वो बोला- हाँ और जब सही वक़्त आएगे. तो सबके सामने भी शादी करेंगे।

मैंने कहा- शेर सिंह जी. आप तो सच में मेरे दीवाने हो गए हो।

उसने मुझे बांहों में कस लिया और बोला- सविता जी. आप नहीं जानती कि मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ. अगर जान भी देनी पड़ी आपके लिए तो दे दूँगा।

बेशक मेरे मन में शेर सिंह के लिए ऐसी कोई प्रेम प्यार की भावना नहीं थी, क्योंकि मैं तो सिर्फ उसके सेक्स के रिश्ते तक ही खुद को सीमित रखा था। मगर वही था जो इस रिश्ते को चूत की गहराई से दिल की गहराई तक ले गया था।

वैसे यहाँ ऊपर छत पर भी हमें किसने देखना था. तो जैसे जैसे नीचे पंडित मंत्र पढ़ पढ़ कर चंदा की शादी करवाता रहा. वैसे वैसे ही मैंने और शेर सिंह ने पूरे सात फेरे लिए. उसने अपनी तरफ से लाया हुआ मंगलसूत्र भी मेरे गले में डाला. मेरी मांग में सिंदूर भी भरा।

एक तरह से देखा जाए तो मैं उसकी पत्नी हो चुकी थी।

फेरों के बाद और कोई रस्म हमने नहीं की. जबकि नीचे मंडप में बहुत सी रस्में चल रही थी। मैंने भी नीचे झुक कर शेर सिंह के पाँव छूये. उसने मुझे उठा कर अपने सीने से लगा लिया।

कितनी देर वो मुझे अपने सीने से चिपकाए खड़ा रहा।

मैंने ही कुछ देर बाद उससे पूछा- क्या हुआ जी?

वो बोला- कुछ नहीं. बस अपनी किस्मत को देख रहा था कि कितनी सुंदर पत्नी मिली है मुझको!

मैंने अपना चेहरा उठा कर उसकी ओर देखा, तो उसने मेरे होंटों को चूम लिया। एक, दो, तीन, चार और फिर तो उसने जैसे झड़ी ही लगा दी चुंबनों की।

मैं भी खुश थी. मैं भी चुंबनों में उसका साथ देने लगी।

चूमते चूमते मेरे तो बदन में हलचल होने लगी और मैंने महसूस किया कि शेर सिंह का पाजामा भी टाईट होने लगा था। मैंने ही हाथ आगे बढ़ाया और पाजामे में ही उसका लंड पकड़ लिया।

उसने मेरी आँखों में देखा और पूछा- चाहिए?

मैंने हाँ में सर हिलाया।

उसने मेरे लहंगे के ऊपर से ही मेरे दोनों चूतड़ सहलाए और मुझे घुमा दिया. मेरा चेहरा पंडाल की तरफ कर दिया। मैंने छतरी के बने हुये दो खंबों का सहारा लिया तो शेर सिंह ने पीछे से मेरे सारा घागरा उठा कर मेरी कमर पे रख दिया। मैं थोड़ा सा और आगे को झुक गई ताकि मेरी गांड और शेर सिंह की तरफ हो जाए और मैं अपनी टाँगें भी खोल कर खड़ी हो गई।

शेर सिंह ने अपना पायजामे का नाड़ा खोला और अपना पाजामा और चड्डी नीचे को सरका दी. अपने लंड पर हल्का सा थूक लगाया और पीछे से मेरी चूत में धकेल दिया। मोटा खुरदुरा सा टोपा मेरी चूत में थोड़ा अटक कर घुसा. मुझे हल्की से तकलीफ हुई. मगर फिर भी अच्छा लगा।

ऊपर से मैं पूरी शादी को देख रही थी. मैंने देखा मेरे पति भी वहीं घूम रहे हैं. एक दो औरतों से जैसे उन्होंने मेरे बारे में पूछा. मैंने ऊपर से चिल्ला कर कहा- अजी मैं यहाँ हूँ. ऊपर!

मगर शादी के शोर शराबे में चौथी मंज़िल की आवाज़ नीचे कहाँ सुनती।

शेर सिंह मुझे चोदता रहा और मैं ऊपर से यूं ही अपनी मज़ाक में अपने पति को और बाकी सबको शादी में घूमते फिरते देखती रही। मेरे लिए शादी नहीं. सेक्स महत्त्वपूर्ण था और शेर सिंह नहीं उसका लंड महत्त्वपूर्ण था।

शेर सिंह मुझे बड़े अच्छे से चोदा और अपना माल मेरी चूत के अंदर ही गिराया। जब वो झड़ गया तो हम चुपचाप नीचे उतर आए।

मगर रास्ते में मैंने शेर सिंह को कह दिया- अभी एक बार से मेरा मन नहीं भरा है. मुझे ये सब फिर से चाहिए.

मैंने कहा तो शेर सिंह बोला- चिंता मत करो मेरी जान. आज सारी रात मैं तुम्हारे साथ हूँ. जितनी बार कहोगी. मैं उतनी बार तुम्हें संतुष्ट करूंगा।

अभी मैं एक बार और सेक्स करना चाहती थी. मगर शेर सिंह नहीं माना तो मैं मजबूरन उसके साथ नीचे आ गई। उसके बाद मैं अपने पति से मिली. तो उन्होंने मुझे गले से लगा लिया- अरे कहाँ चली गई थी मेरी जान. मैं तो बहुत मिस कर रहा था तुम्हें!

उन्होंने मुझे गले से लगा कर मुझे कसा. तो शेर सिंह के वीर्य मेरी चूत से चू कर मेरे घुटनों तक जाता मुझे महसूस हुआ। मैंने भी उन्हें थोड़ा कस कर आलिंगन किया और बोली- अरे क्या बताऊँ. मुझे तो चंदा के काम से फुर्सत नहीं मिल रही. कभी ये करो. कभी वो करो।

मेरे पति बोले- तो यार फ्री कब होगी. मेरा दिल कर रहा है. तुम्हें किसी अकेली जगह लेजा कर खूब प्यार करूँ।

मैंने कहा- रुको एक मिनट मैं आती हूँ।

अपने पति को छोड़ कर मैं सीधी बाथरूम में गई. पहले मैंने अपनी चूत को अच्छे से पानी से धोया और फिर कपड़े से सुखाया। शेर सिंह के पहनाया मंगल सूत्र उतार कर बाथरूम में ही रख दिया। फिर से फ्रेश होकर बाहर आई।

मैंने अपने पति का हाथ पकड़ा और उन्हें वहीं ऊपर शिखर पर ले गई। वहाँ जाकर मैंने उनको गले से लगा लिया। सबके बीच. सबसे दूर ऐसी जगह देख कर मेरे पति बहुत खुश हुये- अरे वाह. क्या जगह ढूँढी है. यहाँ तो हम सबको देख सकते हैं पर हमे कोई नहीं देख सकता।

मगर मैंने बात करने की बजाए अपना घागरा ऊपर उठाया. फिर से उसी जगह उसी पोज में आ गई. मेरे पति ने मेरी हालत देखी. तो बोले – लगता है. तुम्हें भी बड़ी इच्छा हो रही थी सेक्स की? और उन्होंने भी अपना लौड़ा मेरी चूत में घुसा दिया।

कोई 5 मिनट की चुदाई चली. मगर इस चुदाई में वो मज़ा नहीं था जो शेर सिंह की चुदाई में था। पति को भी सेक्स किए काफी दिन हो गए थे. तो बस 5 मिनट में ही वो अपनी सारी गर्मी मेरी चूत में ही निकाल गए।

मुझे बेशक इस सेक्स से कोई मज़ा नहीं आया. मगर हाँ. मेरी चूत की खुजली को थोड़ा आराम आया। उसके बाद हम दोनों नीचे आ गए।

करीब सुबह चार बजे मुझे शेर सिंह फिर से वहीं ऊपर ले गया. इस बार उसने करीब 35 मिनट लगातार मुझे नीचे लेटा कर मुझे चोदा। क्या मस्त और क्या खूब चुदाई की मेरी। मेरा 4 बार पानी गिरा. मगर वो फिर भी डटा रहा।

करीब 35 मिनट बाद जब वो थक कर झड़ा तो मेरी चूत को पूरा भर दिया उसने अपने माल से। मैं नीचे लेटी पसीने पसीने हो रही थी. उसकी तो हालत ही बहुत बिगड़ गई थी. पगड़ी उतार दी, कपड़े उतार दिये, सांस तेज़, दिल की धड़कन तेज़। झड़ने के बाद वो तो जैसे गिर ही गया।

मैं उठी और अपने आप को ठीक करके वापिस नीचे आ गई। उसके बाद मैं चंदा की विदाई में शामिल हो गई। फिर करीब 6 बजे अपने कमरे में सोने चली गई।

दोपहर के 12 बजे मेरे पति ने मुझे जगाया. मेरा सारा बदन जैसे टूट रहा था। उसके बाद चाय पीकर फ्रेश हो कर मैं फिर से तैयार हो कर परिवार में घुलमिल गई।

अगले दिन शेर सिंह नहीं मिला. जिस दिन हम वापिस आने वाले थे. वो मिला. अकेले में लेजा कर मुझसे बोला- आज जा रही हैं?

मैंने कहा- हाँ. जाना तो पड़ेगा।

वो बोला- फिर मिलोगी?

मैंने कहा- अब मिले बिना रहा भी न जाएगा।

वो बोला- ठीक है. कभी मौका लगा तो मैं भी मिलने आऊँगा आपसे।

फिर मुझे अपने गले से लगाया और कहा- आज जाने से पहले एक आखिरी बार!

कहते हुये उसने अपनी पैन्ट खोली. मुझे लगा शायद फिर से सेक्स करेगा. मैंने कहा- नहीं शेर सिंह जी. इतना टाईम नहीं है मेरे पास!

वो बोला- अरे नहीं. चोदना नहीं है. सिर्फ थोड़ा सा चूस जाओ।

मैंने नीचे बैठ कर 1 मिनट उसका लंड चूसा। उसका काला, नाड़ीदार, खुरदुरा सा लंड फिर से खड़ा हो गया। मेरा दिल तो किया के उसका लंड चूसती ही रहूँ और आखरी बार फिर से एक बार इस से चुदवा कर जाऊँ. मगर ये संभव नहीं था।

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मैं उठी और खुद ही एक बार शेर सिंह के होंठो को चूमा और दौड़ कर बाहर आ गई। शेर सिंह मेरे पीछे नहीं आया।

मैं अपने घर पहुंची. उसके बाद फिर से वही रूटीन ज़िंदगी। रात को पति से सेक्स. दिन में चाचाजी से सेक्स। मगर शेर सिंह शेर सिंह था. उसके जैसे मज़ा और कोई नहीं दे सका मुझे।

दोस्तो. कैसी लगी मेरी चुदाई की कहानी. आप सब मुझे अपने गंदे लंड और गन्दी बाते ईमेल करके बताये. मुझे आपके ईमेल का इंतज़ार रहेगा. मैं कोशिश करूंगी कि आगे की कहानी जल्दी ही लिखूँ. (anvesha@indianadultstory.com)

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